वेतनभोगी कर्मचारियों को टैक्स रेजीम में बदलाव की अनुमति, ITR फाइल वक्त भी टैक्स रेजीम बदलने का मौका

वेतनभोगी कर्मचारियों को टैक्स रेजीम में बदलाव की अनुमति, ITR फाइल वक्त भी टैक्स रेजीम बदलने का मौका

केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2023-24 से नई टैक्स व्यवस्था को डिफॉल्ट कर दिया है। इसका मतलब यह है कि यदि कोई वेतनभोगी करदाता स्पष्ट रूप से पुरानी और नई कर व्यवस्था के बीच चयन नहीं करता है, तो उसके कर की गणना नई व्यवस्था के तहत स्वचालित रूप से की जाएगी। ऐसे में नए सिस्टम के आधार पर कई ऐसे कर्मचारियों के वेतन से टीडीएस काटा गया होगा, जिनकी टैक्स देनदारी नए सिस्टम में ज्यादा होगी. यह उनके लिए घाटे का सौदा होगा. इससे बचने के लिए उनके पास अभी भी पुराने टैक्स सिस्टम को अपनाकर आईटीआर फाइल करने का विकल्प मौजूद है।

आयकर नियमों के अनुसार, वेतनभोगी व्यक्तियों और व्यावसायिक पेशेवरों को हर साल पुरानी और नई कर व्यवस्था के बीच स्विच करने का अवसर दिया जाता है। भले ही किसी करदाता को वित्तीय वर्ष की शुरुआत में डिफ़ॉल्ट रूप से नई कर व्यवस्था में डाल दिया गया हो या उसने स्वयं कोई व्यवस्था चुनी हो। रिटर्न दाखिल करते समय इसे बदलने का मौका मिलता है. इसका मतलब यह है कि अगर करदाता ने गलती से कोई सिस्टम चुन लिया है तो भी वह रिटर्न दाखिल करते समय गलती को सुधार सकता है।

अगर आप इस साल आयकर रिटर्न दाखिल करते समय पुरानी कर प्रणाली का विकल्प चुन रहे हैं, तो यह भी सुनिश्चित करें कि आप 31 जुलाई की समय सीमा तक आईटीआर दाखिल कर लें। ऐसा इसलिए है क्योंकि आयकर नियम किसी व्यक्ति को पुरानी कर व्यवस्था का विकल्प चुनने की अनुमति केवल तभी देते हैं जब आईटीआर समय पर दाखिल किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति 31 जुलाई के बाद विलंबित आईटीआर (1 अगस्त से 31 दिसंबर के बीच) दाखिल करता है, तो कर देनदारी की गणना नई कर व्यवस्था के अनुसार की जाएगी।

भले ही कोई करदाता अपने नियोक्ता को सूचित करने में विफल रहता है, आयकर रिटर्न दाखिल करते समय कर व्यवस्था बदल सकती है। बशर्ते यह नियत तिथि के भीतर किया जाए। टैक्स एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अगर करदाता को लगता है कि नए या पुराने सिस्टम में उसे ज्यादा फायदा मिल रहा है तो वह आयकर रिटर्न दाखिल करते समय इसे बदल सकता है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि हर साल टैक्स सिस्टम बदलने की यह सुविधा केवल वेतनभोगी लोगों के लिए है। बिजनेसमैन या ट्रेडर्स केवल एक बार ही बदलाव कर सकते हैं, हर साल नहीं।

आयकर विभाग ने हाल ही में आकलन वर्ष 2024-25 करदाताओं के लिए आयकर रिटर्न फॉर्म जारी किए हैं। इनमें कर छूट दावों के लिए स्टेटमेंट फॉर्म के साथ-साथ फॉर्म-10-आईईए भी शामिल है। जो करदाता नई से पुरानी कर प्रणाली में स्विच करना चाहता है उसे यह फॉर्म भरना होगा। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो यह माना जाएगा कि करदाता ने नई प्रणाली अपना ली है और उसी के अनुसार कर की गणना की जाएगी। जो लोग पुराने टैक्स सिस्टम में वापस जाना चाहते हैं उन्हें नए 10-IEA फॉर्म में कई तरह की जानकारी भरनी होगी. इसके तहत पैन नंबर, टैक्स भुगतान की पूरी जानकारी आदि शामिल है. इसके अलावा फॉर्म में दोनों टैक्स व्यवस्थाओं में बदलाव करने के बारे में भी पूछा जाएगा।

●आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 115BAC(6) नई कर व्यवस्था से संबंधित है। यह अनुभाग किसी व्यक्ति को आयकर रिटर्न दाखिल करते समय प्रत्येक वित्तीय वर्ष में कर व्यवस्था चुनने की अनुमति देता है।

●आयकर विभाग ने वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए आयकर रिटर्न फॉर्म अधिसूचित कर दिया है। विभाग के पोर्टल पर आईटीआर फॉर्म दाखिल करते समय पूछा जाएगा, "क्या आप नई कर व्यवस्था से बाहर निकलने के लिए धारा 115BAC(6) के तहत विकल्प का उपयोग करना चाहते हैं?"

●डिफ़ॉल्ट विकल्प 'नहीं' होगा। करदाता को इसे 'हां' में बदलना होगा।

●यदि विकल्प 'नहीं' चुना जाता है, तो आयकर रिटर्न फॉर्म नई कर व्यवस्था के स्लैब के अनुसार देय आयकर की राशि की गणना करेगा।

●यदि करदाता 'हां' का चयन करता है, तो देय आयकर की गणना पुरानी कर प्रणाली में आयकर स्लैब के आधार पर की जाएगी।


टैक्स छूट और कटौतियों के बीच बड़ा अंतर

पुरानी और नई आयकर व्यवस्थाओं के बीच मुख्य अंतर उनके तहत मिलने वाली कर छूट और कटौतियां हैं। पुरानी प्रणाली के तहत, करदाता पर्याप्त कटौती का दावा कर सकते थे, जिसमें मानक कटौती के साथ धारा 80सी, धारा 80डी और धारा 80टीटीए में निर्दिष्ट कर छूट शामिल थी। पुरानी कर व्यवस्था में, एक वेतनभोगी व्यक्ति कुल 2.5 लाख रुपये की कटौती का दावा कर सकता था। इसके विपरीत, नई व्यवस्था चुनने वाले करदाता को केवल 50 हजार रुपये के मानक कटौती का लाभ मिलेगा।

टैक्स रेजीम का चयन करना जरूरी है

यदि कोई वेतनभोगी करदाता पुरानी व्यवस्था पर वापस लौटना चाहता है तो उसे नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत में अपने नियोक्ता को इस संबंध में सूचित करना होगा। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो वह स्वत: ही नई कर व्यवस्था के अंतर्गत आ जाएगा और इसके तहत तय आयकर स्लैब के आधार पर उसके वेतन से आयकर काट लिया जाएगा। वित्त वर्ष 2024-25 में भुगतान किए गए अतिरिक्त कर के लिए आयकर रिफंड का दावा करने के लिए उन्हें अगले वित्तीय वर्ष तक इंतजार करना होगा।

ओल्ड टैक्स सिस्टम से नए टैक्स सिस्टम में जा रहे हैं तो...

● करदाता को केवल दो कटौतियों का लाभ मिलेगा। पहला, वेतन या पेंशन से 50,000 रुपये की मानक कटौती और दूसरा, एनपीएस के टियर-1 खाते में नियोक्ता द्वारा किया गया योगदान।

● चूंकि ये दोनों छूटें पुरानी व्यवस्था में भी मौजूद हैं, इसलिए अगर करदाता ने इस व्यवस्था को चुना है तो इनका उल्लेख फॉर्म-16 में किया जाना चाहिए। ऐसे में रिटर्न दाखिल करने में कोई परेशानी नहीं होगी।

● करदाताओं को दोनों कर व्यवस्थाओं की अच्छी तरह से तुलना करनी चाहिए और जो उनके लिए सबसे फायदेमंद है उसे चुनना चाहिए।

ऐसे समझें इनकम टैक्स का गणित

मान लीजिए किसी करदाता की सालाना आय 11 लाख रुपये है। आइए जानते हैं किस सिस्टम के मुताबिक आईटीआर फाइल करना उनके लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद रहेगा -

अगर करदाता कुछ भी निवेश नहीं करता है और उसका पीएफ भी नहीं कटता है तो पुरानी व्यवस्था के तहत उसे 1,48,200 रुपये टैक्स के रूप में चुकाने होंगे। वहीं, नई व्यवस्था के तहत सिर्फ 78,000 रुपये ही चुकाने होंगे। यहां होगी करीब 70 हजार रुपये की बचत। निवेश के मामले में अगर करदाता पुराने टैक्स सिस्टम में 80सी के तहत 1.50 लाख रुपये, एनपीएस के तहत 50 हजार रुपये और एचआरए के तहत 2 लाख रुपये की छूट लेते हैं तो सिर्फ 44,200 रुपये ही कर के रूप में भुगतान करना होगा।


नोट : पुरानी व्यवस्था में 2.5 लाख रुपये की कर छूट मिलती है। इसमें 80सी के तहत 1.5 की कर छूट, 50 हजार की मानक कटौती और 50 हजार एनपीएस में योगदान के शामिल हैं। वहीं, नई व्यवस्था में केवल 50 हजार की मानक कटौती का ही लाभ मिलता है।

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