69000 शिक्षक भर्ती विवाद : जानिए इस भर्ती में कब और कैसे शुरू हुआ विवाद और क्या था पूरा मामला ?

69000 शिक्षक भर्ती विवाद : जानिए इस भर्ती में कब और कैसे शुरू हुआ विवाद और क्या था पूरा मामला ?

69000 शिक्षक भर्ती मामले में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला आ चुका है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने शिक्षक भर्ती की मेरिट लिस्ट रद्द कर दी है। सरकार को 69,000 सहायक अध्यापक भर्ती परीक्षा के नतीजे भी नए सिरे से जारी करने का आदेश दिया गया है। इस आदेश से न सिर्फ यूपी सरकार को झटका लगा है, बल्कि नई चयन सूची की तैयारी से पिछले 4 साल से नौकरी कर रहे हजारों शिक्षक भी असमंजस की स्थिति में हैं। आइए जानते हैं क्या है ये पूरा विवाद... 

69000 शिक्षक भर्ती विवाद

उत्तर प्रदेश में जब अखिलेश सरकार थी तो 1 लाख 37 हजार शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक पद पर समायोजित किया गया था। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और समायोजन रद्द कर दिया गया। यानी जिन शिक्षामित्रों को अखिलेश सरकार ने सहायक अध्यापक बनाया था, वे फिर से शिक्षामित्र बन गये। अब इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को 1 लाख 37 हजार पदों पर भर्ती करने का आदेश दिया, तब योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि हम एक साथ इतने पद नहीं भर सकते। तब सुप्रीम कोर्ट ने सभी पदों को दो चरणों में भरने का आदेश दिया। इस आदेश के बाद योगी सरकार ने 2018 में सबसे पहले 68500 पदों पर वैकेंसी निकाली। इसके बाद भर्ती का दूसरा चरण 69000 सहायक अध्यापक भर्ती थी। 

कहां से शुरू हुआ भर्ती को लेकर विवाद?

69 हजार सहायक शिक्षक पदों के लिए यह भर्ती परीक्षा 6 जनवरी 2019 को आयोजित की गई थी। इस भर्ती के लिए अनारक्षित के लिए कटऑफ 67.11 फीसदी और ओबीसी के लिए कटऑफ 66.73 फीसदी रही। इस भर्ती के तहत करीब 68 हजार लोगों को नौकरी मिली है। लेकिन यहीं से सवाल उठा कि 69 हजार भर्तियों में आरक्षण नियमों की अनदेखी की गई। बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 का पालन ठीक से नहीं किया गया। विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरे 69000 भर्ती अभ्यर्थियों का कहना है कि नियमावली में स्पष्ट है कि यदि कोई ओबीसी वर्ग का अभ्यर्थी अनारक्षित श्रेणी के कटऑफ से अधिक नंबर पाता है तो उसे ओबीसी कोटे से नहीं बल्कि अनारक्षित श्रेणी में नौकरी मिलेगी। यानी वह आरक्षण के दायरे में नहीं गिना जाएगा।

इसके बाद 69 हजार शिक्षकों की भर्ती का मामला उलझ गया है। आंदोलनकारी अभ्यर्थियों का दावा है कि 69 हजार शिक्षक भर्ती में ओबीसी वर्ग को 27% की जगह सिर्फ 3.86% आरक्षण मिला, यानी 18598 सीटों में से ओबीसी वर्ग को सिर्फ 2637 सीटें मिलीं। जबकि उस वक्त सरकार ने कहा था कि ओबीसी वर्ग के करीब 31 हजार लोगों की नियुक्ति की गई है। सरकार के इस बयान पर अभ्यर्थियों ने बेसिक शिक्षा नियमावली-1981 और आरक्षण नियमावली-1994 का हवाला देते हुए कहा कि ओबीसी वर्ग के करीब 31 हजार लोगों में से जो नियुक्त किया गया है, करीब 29 हजार अनारक्षित कोटे से सीटें पाने के हकदार थे। प्रदर्शन कर रहे अभ्यर्थियों ने कहा कि हमें 29 हजार ओबीसी वर्ग के लोगों को आरक्षण के दायरे में शामिल नहीं करना चाहिए।

इसी तरह अभ्यर्थियों का आरोप है कि 69 हजार शिक्षक भर्ती में SC वर्ग को भी 21 फीसदी की जगह सिर्फ 16.6 फीसदी आरक्षण मिला। अभ्यर्थियों का दावा है कि 69 हजार शिक्षक भर्ती में करीब 19 हजार सीटों का घोटाला हुआ है। इसे लेकर वह हाईकोर्ट भी गए और राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग से भी शिकायत की।

लंबे समय से मामला हाईकोर्ट में लंबित था

69 हजार शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण अनियमितता का मामला लंबे समय से हाईकोर्ट में विचाराधीन था। शिक्षक भर्ती में 19 हजार सीटों के आरक्षण को लेकर अनियमितता के आरोप लगे थे। इसमें गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए कई अभ्यर्थी कोर्ट गए थे। हाईकोर्ट ने 69000 सहायक शिक्षकों की मौजूदा सूची को गलत मानते हुए मेरिट सूची रद्द कर दी है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को 3 महीने के भीतर नई मेरिट लिस्ट तैयार करने का आदेश दिया है। इसमें आरक्षण के नियमों और बेसिक शिक्षा नियमावली के तहत ही भर्ती करने के आदेश दिए गए हैं।

क्या सच में आरक्षण घोटाला हुआ है?

नाम नहीं छापने की शर्त पर एक शिक्षक अभ्यर्थी ने बताया कि अब जब हाईकोर्ट में सरकार का बयान आ गया है और कोर्ट का मेरिट सूची रद्द करने का आदेश आ गया है, तो ऐसे में एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं कि क्या वाकई राज्य में कोई आरक्षण घोटाला हुआ है। पिछले साल ही मार्च 2023 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 69000 सहायक शिक्षक भर्ती की सूची को गलत माना था और दोबारा सूची बनाने का आदेश दिया था।

मुख्यमंत्री ने इस मामले पर बुलाई बैठक

उत्तर प्रदेश में 69000 शिक्षक भर्ती मामले में आखिरकार सरकार को हाई कोर्ट से झटका मिलने के बाद योगी सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। सरकार असमंजस में है कि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाए या नई मेरिट लिस्ट जारी करे। सीएम ने इस मुद्दे पर रविवार यानी 18 अगस्त को बड़ी बैठक बुलाई है।

उत्तर प्रदेश में 69 हजार शिक्षक भर्ती मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने अहम फैसला सुनाते हुए भर्ती की मेरिट लिस्ट रद्द कर दी है। कोर्ट की डबल बेंच ने सरकार को आरक्षण नियमावली 1994 की धारा 3(6) और बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 का पालन करते हुए नई चयन सूची तैयार करने का निर्देश दिया है।

सरकार के सामने क्या हैं विकल्प?

इस फैसले को लेकर सरकार के पास दोनों विकल्प हैं, लेकिन दोनों विकल्पों की अपनी-अपनी चुनौतियां भी हैं। अगर सरकार सुप्रीम कोर्ट जाती है तो उस पर पिछड़ा विरोधी होने और आरक्षण की अनदेखी करने का आरोप लग सकता है। अगर सरकार नई मेरिट लिस्ट जारी करती है तो उन अभ्यर्थियों पर तलवार लटक सकती है जो सफलतापूर्वक नौकरी कर रहे हैं।

अपने और विपक्षी दोनों हमलावर

शिक्षक भर्ती मामला योगी सरकार के लिए गले की फांस बन गया है. इस मामले में योगी सरकार के अपने और विपक्ष दोनों हमलावर हैं. सरकार में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने ट्विटर पर पोस्ट कर लिखा, 'शिक्षक भर्ती मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला सामाजिक न्याय की दिशा में स्वागत योग्य कदम है। यह उन पिछड़े और दलित वर्ग के पात्रों की जीत है जिन्होंने अपने अधिकारों के लिए लंबा संघर्ष किया। मैं उनका तहे दिल से स्वागत करता हूं।

डिप्टी सीएम का बयान ये बताने के लिए काफी है कि सीएम योगी इस मामले में किस तरह जूझ रहे हैं। सरकार में सहयोगी दलों का रवैया भी सरकार विरोधी नजर आ रहा है। अनुप्रिया पटेल और ओमप्रकाश राजभर भी इसे पिछड़ों की जीत बता रहे हैं। विपक्षी समाजवादी पार्टी ने भी इसे संविधान और पिछड़े वर्ग की जीत बताया है। बयानों के आधार पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के सुर मिले-जुले हैं और सरकार दोनों तरफ से दबाव में है। राज्य में 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव से पहले हाई कोर्ट का यह फैसला सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस संकट से निकलने के लिए योगी सरकार कौन सा रास्ता अपनाती है?


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