क्या है 69000 शिक्षक भर्ती का मामला? जिस पर हाईकोर्ट ने सरकार को दिए संशोधित मेरिट लिस्ट जारी करने के आदेश

क्या है 69000 शिक्षक भर्ती का मामला? जिस पर को उच्च न्यायालय ने सरकार को दिए संशोधित मेरिट लिस्ट जारी करने के आदेश

उत्तर प्रदेश में 69 हजार शिक्षकों की भर्ती मामले में राज्य सरकार को बड़ा झटका लगा है। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को तीन महीने के अंदर दोबारा संशोधित मेरिट लिस्ट जारी करने का आदेश दिया है। यह आदेश इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अभ्यर्थियों की ओर से दायर उस याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया, जिसमें कहा गया था कि इस भर्ती में आरक्षण नियमों का पालन नहीं किया गया। आइए इस लेख में जानते हैं क्या है 69 हजार शिक्षक भर्ती का पूरा मामला।

69000 शिक्षक भर्ती

अखिलेश यादव सरकार में प्रदेश के 1,72,000 शिक्षा मित्रों को शिक्षक पद पर समायोजित करने का आदेश दिया गया था। इसमें से 1,37,000 शिक्षा मित्रों को समायोजित किया गया। इसके खिलाफ जब शिक्षक कोर्ट गए तो सुप्रीम कोर्ट ने समायोजन रद्द कर दिया और राज्य सरकार को रिक्त पद भरने का आदेश दिया। राज्य सरकार ने 69,000 और 68,500 शिक्षकों की भर्ती की। इसमें 69 हजार शिक्षकों की भर्ती का विज्ञापन दिसंबर 2018 में जारी किया गया था जिसमे कुल 4 लाख 10 हजार युवाओं ने फॉर्म भरा था। इसमें 1 लाख 47 हजार अभ्यर्थी उत्तीर्ण हुए, जिनमें आरक्षित वर्ग के 1 लाख 10 हजार अभ्यर्थी शामिल थे। इन आरक्षित श्रेणियों में ओबीसी की संख्या 85,000 थी।

ओबीसी और सामान्य का कितना था कट ऑफ?

सरकार ने परीक्षा तक कट ऑफ लिस्ट जारी नहीं की। परीक्षा के एक दिन बाद कट ऑफ लिस्ट जारी की गई जिसमें सामान्य वर्ग के लिए 65 प्रतिशत अंक और ओबीसी के लिए 60 प्रतिशत अंक रखे गए थे। गुणांक, डिग्री और कट ऑफ को मिलाकर बनता है। इसी गुणांक के आधार पर मेरिट तैयार की जाती है। ऐसे में मेरिट लिस्ट में सामान्य वर्ग के लिए कटऑफ 67.11 और ओबीसी के लिए कटऑफ 66.73 रखा गया।

अभ्यर्थियों ने गलत सवाल पर लगाए ये आरोप

नतीजों के बाद करीब 1000 अभ्यर्थी हाई कोर्ट पहुंचे और दावा किया कि प्रश्न पत्र में एक सवाल गलत था। यानी अभ्यर्थियों को एक नंबर गलत मिला है। जांच हुई तो आरोप सही पाया गया। तब हाई कोर्ट ने कहा कि कोर्ट में जितने अभ्यर्थी आयें हैं उनके 1 नंबर बढ़ा दिए जाएं। इसके बाद कुछ अभ्यर्थियों ने दावा किया कि आरक्षण देने में अनियमितता हुई है।

आरक्षण नियमों का पालन नहीं किया गया

कुल 69 हजार पदों में से ओबीसी की हिस्सेदारी 18,598 थी। परीक्षा में उत्तीर्ण अभ्यर्थियों ने रिजल्ट की पूरी सूची बेसिक शिक्षा विभाग की वेबसाइट से प्राप्त की। तीन महीने तक रिसर्च की। अभ्यर्थियों का दावा है कि इस सूची में बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 और आरक्षण नियमावली 1994 का पालन नहीं किया गया है। आरक्षण नियम कहते हैं कि जिन्हें सामान्य वर्ग के अनुसार अंक मिले उन्हें आरक्षित वर्ग से हटाकर सामान्य वर्ग में रखा जाए।

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राज्य सरकार ने क्या दिया जवाब?

जबकि आरक्षित वर्ग का चयन उनके कटऑफ के अनुसार किया जाना चाहिए। यह भी दावा किया गया कि सरकार ने केवल तीन फीसदी ओबीसी वर्ग का चयन किया है।bहालांकि, जांच के बाद सरकार ने दावा किया कि इस भर्ती में 18,568 पदों के मुकाबले 30 हजार से ज्यादा ओबीसी अभ्यर्थियों का चयन किया गया। उम्मीदवारों का दावा है कि सरकार ने उत्तीर्ण ओबीसी उम्मीदवारों में से 27% का चयन किया जो ओबीसी कटऑफ को पूरा कर रहे थे। यानी दावे के मुताबिक आरक्षण नियमों का पालन नहीं किया गया।

इसके बाद अभ्यर्थियों ने राज्य सरकार से लेकर पिछड़ा वर्ग आयोग और हाईकोर्ट तक अपनी मांग उठाई। दावा है कि पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी माना है कि अनियमितताएं हुई हैं। साल 2023 में इलाहाबाद हाई कोर्ट की एकल पीठ ने राज्य सरकार से शिक्षक भर्ती सूची दोबारा तैयार करने को कहा था। देरी होते देख अभ्यर्थी डबल बेंच के पास गए और अब डबल बेंच ने इस मामले में अपना फैसला सुना दिया है।

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